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" क़सम खाने का बयान " 

अल्लाह के रसूल ने फरमाया : 
अपने बाप दादा और अपनी माओ की कसमें मत उठाओ और न ही अपनी बुतों की और अल्लाह की कसम भी शिर्फ़ उस सूरत में उठाओ जब तुम सच्चे हो । [ Mishkat 3418 ] 

इब्ने उमर रज़ियल्लाहो अन्हो ने एक आदमी को क़ाबा की क़सम खाते हुऐ सुना तो कहा कि मैने रसूल अल्लाह को फरमाते हुऐ सुनाः जिस किसी ने अल्लाह तआला के इलावा किसी और चीज़ की क़सम खायी तो गोया के उसने अल्लाह के साथ शिर्क किया । [ Abu Dawood 3251 ] 

Quran : - अपनी क़समों की हिफ़ाज़त किया करो । [ 5:89 ]

 Note : - क़सम की हिफ़ाज़त के कई मतलब हैं : एक यह कि क़सम सही बातों के सिलसिले में खाई जाए , फुजूल बातों और गुनाह के कामों में क़सम न खाई जाए । दूसरे यह कि जब किसी बात पर आदमी क़सम खाए तो उसे याद रखे । ऐसा न हो कि अपनी ग़फ़लत और लापरवाही की वजह से वह उसे भूल जाए और फिर उसकी ख़िलाफ़वी करे । तीसरे यह कि जब किसी सही मामले में इरादे के साथ क़सम खाई जाए तो उसे पूरा किया जाए और अगर उसकी ख़िलाफ़वी हो जाए तो उसका कफ़्फ़ारा अदा किया जाए ।

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